भगत सिंह जी के कुछ अनसुने तथ्य,
तो कैसे हो दोस्तों,
उम्मीद करते है सब बढ़िया ही होंगे। तो आज हम आपको एक ऐसे शख्श के बारे में बताना चाहेंगे जिहोने भारत देश की आजादी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। हम बात कर रहे है शहीद भगत सिंह जी के बारे में। जी हाँ, वैसे तो और भी शहीद है जो आजादी की लड़ाई में थे, पर आज हम भगत सिंह जी के बारे में ही बात करने जा रहे हैं
आज हम उनके बिस्तृत जीवन के बारे में आपको नहीं बताएँगे। क्यूंकि वो तो आप शायद कई किताबी और इंटरनेट पर पहले से पद ही चुके होंगे । आज हम आपको भगत सिंह जी के बारे में कुछ तथ्य बताने जा रहे है जो शायद ही आपने पहले सुने होंग।
ज। तथ्य जो है भगत सिंह जी के। तो आप इसी तरह हमारे साथ बने रहे हम आपको बताते है ऐसे कोण कोण से तथ्य है जो भगत सिंह जी के जीवन और उनकी भारत देश के प्रति शहीदी से जुड़े हुए है
अपनी 23 साल की उम्र मैं एक आम इंसान शादी कर लेता है या फिर अपने दोस्तों के साथ ऐश करता है या फिर अपने Future को Settle करने के लिए काम करता है पर वंही bhaghat singh ji जिन्होने अपनी 23 साल की उम्र मैं अपनी जान अपने देश के लिये कुर्बान कर दी. अपने देश की आजादी के लिये शादी तक नहीं की. दोस्तों हम आज आपको bhaght singh ji के बारे में कुछ ऐसे Facts आपको बताएंगे जो आप शायद ही पहले जानते होंगे और इससे आपको काफी motivation भी मिलेगा
28 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले हालांकि उनके कार्यों ने देश के
युवाओं को राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए हमेशा प्रेरित किया. उनके रास्ते पर चलकर बहुत से लोगों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. जहां कई लोग भगत सिंह के क्रांतिकारी दृष्टिकोण से सहमत नहीं थे. वहीं एक बड़ी संख्या में लोग उनके कार्यों के समर्थक थे. ऐसे में इतिहास के पन्नों को पलटते हुए उनसे जुड़े कुछ रोचक तथ्यों को जानना दिलचस्प रहेगा:
बंगा में (जो अब पाकिस्तान में है) पैदा हुए भगत सिंह महज 23 वर्ष की छोटी-सी उम्र में हंसते-हंसते देश के लिए फंसी के फंदे पर झूल गए
इस लेख में हम भगत सिंह जी की शहादत को याद करते हुए उनसे जुड़े कुछ अनजाने तथ्यों का विवरण दे रहे हैं.
अनसुने तथ्य,
उनका जन्म 28 सितंबर, 1907 को पंजाब, भारत (अब पाकिस्तान) में एक सिख परिवार में हुआ था।
8 वर्ष की छोटी उम्र में ही वह भारत की आजादी के बारे में सोचने लगे थे
भगत सिंह अपने बचपन में हमेशा बंदूकों के बारे में बात करते थे। वह खेतों में बंदूकें उगाना चाहता था, जिसके इस्तेमाल से वह अंग्रेजों से लड़ सकता था। जब वह 8 साल का था, तो खिलौने या खेल के बारे में बात करने के बजाय वह हमेशा भारत से अंग्रेजों को बाहर निकालने के बारे में बोलता था।
12 साल की उम्र में जलियांवाला बाग की घटना के बाद, उन्होंने स्कूल बंक किया और एक दुखद जगह पर चले गए। वहां उन्होंने भारतीयों के खून से गीली मिट्टी की एक बोतल इकट्ठा की और रोज उसकी पूजा की।
कॉलेज में, वह एक महान अभिनेता थे और ‘राणा प्रताप’ और ‘भारत-दुर्दशा’ जैसे नाटकों में कई भूमिकाएँ निभाईं।
15 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना घर छोड़ दिया थाl
साथियों के साथ, भगत सिंह ने सेंट्रल असेंबली, दिल्ली में बम फेंके। वे किसी को घायल नहीं करना चाहते। बम निम्न श्रेणी के विस्फोटक से बने थे।
भगत सिंह ने एक शक्तिशाली नारा ‘इंकलाब जिंदाबाद’ गढ़ा, जो भारत के सशस्त्र संघर्ष का नारा बन गया।
भगत सिंह ने अंग्रेजों से कहा था कि “फांसी के बदले मुझे गोली मार देनी चाहिए” लेकिन अंग्रेजों ने इसे नहीं माना। इसका उल्लेख उन्होंने अपने अंतिम पत्र में किया हैl
इस पत्र में भगत सिंह ने लिखा था, चूंकि “मुझे युद्ध के दौरान गिरफ्तार किया गया है। इसलिए मेरे लिए फाँसी की सजा नहीं हो सकती हैl मुझे एक तोप के मुंह में डालकर उड़ा दिया जाए.”
ऐसा कहा जाता है कि भगत सिंह मुस्कुराते हुए फांसी के फंदे पर झूल गए थे। वास्तव में निडरता के साथ किया गया उनका यह अंतिम कार्य “ब्रिटिश साम्राज्यवाद को नीचा” दिखाना था।
जब उसकी मां जेल में उनसे मिलने आई थी तो भगत सिंह जोरों से हँस पड़े थेl यह देखकर जेल के अधिकारी भौचक्के रह गए कि यह कैसा व्यक्ति है जो मौत के इतने करीब होने के बावजूद खुले दिल से हँस रहा है.
भगत सिंह शादी नहीं करना चाहते थे. ऐसे में उनके माता-पिता ने उनकी शादी करने की कोशिश की, तो वह अपना घर छोड़कर कानपुर चले गए थे. उन्होंने यह कहते हुए घर छोड़ दिया था कि “अगर मेरा विवाह गुलाम भारत में हुआ, तो मेरी वधु केवल मृत्यु होगी”.
उन्होंने सुखदेव के साथ मिलकर लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने की योजना बनाई और लाहौर में पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट को मारने की साजिश रची. हालांकि पहचानने में गलती हो जाने के कारण उन्होंने ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स को गोली मार दी थी.
सिख होने के नाते भगत सिंह के लिए उनकी दाढ़ी और बाल बहुत महत्वपूर्ण थे. मगर उन्होंने बाल कटवा दिए, ताकि वह अंग्रेज उन्हें पकड़ न सके. अंतत: वह ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या के बाद लाहौर से भागने में सफल रहे थे
ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या के करीब एक साल के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली के सेंट्रल असेंबली हॉल में बम फेंके और इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए. साथ ही इस बार उन्होंने खुद को गिरफ्तार हो जाने दिया.
जेल के अंदर भी भगत सिंह का क्रांतिकारी रवैया कायम रहा. उन्होंने आक्रामक तरीके से भारत की स्वतंत्रता के लिए कैदियों को प्रेरित किया और अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए.
अपने मुकदमे की सुनवाई के समय उन्होंने अपना कोई बचाव पेश नहीं किया, बल्कि इस अवसर का इस्तेमाल उन्होंने भारत की आजादी की योजना का प्रचार करने में किया.
उनको मौत की सजा 7 अक्टूबर 1930 को सुनाई गई, जिसे उन्होंने निर्भय होकर सुना.
जेल में रहते हुए उन्होंने विदेशी मूल के कैदियों के साथ अच्छा व्यवहार करने की मांग की. उनके साथ इलाज में भेदभाव के विरोध में उन्होंने 116 दिन की भूख हड़ताल भी की थी.
उनकी फांसी की सजा को 24 मार्च 1931 से 11 घंटे घटाकर 23 मार्च 1931 को शाम 7:30 बजे कर दिया गया. उन्हें फांसी की सजा सुनाने वाला न्यायाधीश का नाम जी.सी. हिल्टन था.
ऐसा कहा जाता है कि कोई भी मजिस्ट्रेट उनकी फांसी के समय उपस्थित रहने को तैयार नहीं था. उनकी मौत के असली वारंट की अवधि समाप्त होने के बाद एक जज ने वारंट पर हस्ताक्षर किए और फांसी के समय तक उपस्थित रहे.
कल भी सरदार भगत सिंह जी सबके आदर्श थे, आज भी हैं और आने वाले कल में भी रहेंगे, क्योंकि उन जैसा क्रांतिवीर न कभी पैदा हुआ है और न कभी होगा।
यह २२ तथ्य, जो की शहीद भगत सिंह जी के बारे में बताते है, आपको कैसे लगे? उनकी विरासत कई लोगों के दिलों में बनी रहेगी। इन अज्ञात तथ्यों में निश्चित रूप से गहरा सम्मान होगा और यह उनके जीवन और इसकी क्रांति के बारे में भी व्याख्या करता है आप कमेंट करके हमें बता सकते है आपको यह तथ्य कैसे लगे और आप इन में कौन से तथ्य पहले से ही जानते थे?
धन्यवाद